बिश्नोई समाज: जागरण व हवन का विधि-विधान

बिश्नोई समाज में जागरण व हवन (Bishnoi, awakening and havan in the society):

बिश्नोई, समाज में जागरण व हवन मुख्य धार्मिक उत्सव (कृत्य) है श्री जम्भेश्वर भगवान् के समय हो जागरण व हवन का कार्य श्री बाजाजी तरड़ के यहां जागरण हुआ था अथवा प्रारम्भ हो चुका था। सबसे पहले ऐसा परम्परा से सुनते हैं। जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक विधि-विधान से जागरण करवाता है। उसे दश गौओं के दान का फल प्राप्त होता है। इस प्रकार जो व्यक्ति धर्म पूर्वक जीवन व्यतीत करता हुआा साखी व भजनों से जागरण लगाता है। उसे एक गौ के दान का फल मिलता है तथा जो श्रद्धा पूर्वक ठीक ढंग से बैठकर जागरण की धार्मिक बातों को सुनता है उसे भी एक गौ के दान का फल मिलता है। अतः जागरण को बहुत ही श्रद्धा पूर्वक विधि-विधान से करना चाहिये ।

जागरण व हवन का विधि-विधान :

शास्त्रों में कहा है कि 'देवो भूत्वा देवं यजेत्' देवता बनकर देवता की हवन आदि के द्वारा पूजा करे। देवता शुद्ध रहते हैं श्रतः मानव भी बाहर भीतर से शुद्ध होकर देवताओं का पूजन करे । पहले बाहर की शुद्धता की आवश्यकता होती है अतः जागरण व हवन करवाने वाला व्यक्ति पहले अपने घर को, कपड़ों को तथा शरीर को शुद्ध कर ले। घर लीपने व शुद्ध जलसे धोने पर शुद्ध हो जाता है। कपड़े धोने से साफ हो जाते हैं तथा शरीर ठीक ढंग से गुरु मन्त्र बोलते हुए स्नान करने से शुद्ध हो जाता है। जिस घर में हवन व जागरण हो उस घर के सभी बालकों, स्त्रियों पुरुषों को शुद्ध होना आवश्यक है।

जागरण व हवन का विधि-विधान
जागरण व हवन का विधि-विधान

जिस रात्रि में जागरण लगाना हो उससे पहले, दिन में निमन्त्रण आदि देकर भाई बन्धुओं व सन्तों तथा गायणों को आदर पूर्वक बुला लेना चाहिये । यदि जागरण से पहले भाई दन्धुओं को भोजन कराना हो तो दिन में ही भोजन बनाकर, एक रोटी को गौ के घी और गुड़ में अथवा खांड में चूरकर भगवान् को अग्नि में भोग लगावे । तदुपरान्त सन्तों व गायणों को भोजन जोमाकर भाई-बन्धुओं व बालकों को भोजन जीमाना उचित है। पहले भाई-बन्धुओं व बालकों को भोजन जोमाकर तदुपरान्त सन्तों व गायणों को भोजन जोमाने से घर वाले को दोव का भागी बनना पड़ता है। यदि सन्त किसी कारणवश देर से आयें तो पुनः दुबारा भोजन बनाकर उन्हें जीमाना ठीक है न कि बना हुआ भोजन जिसे हम सामान्य बालकों को पहले से जीमा रहे हैं। भोजन दिन छिपने से पहले जीमाना ही लाभदायक है। किसी कारणवश देर हो जावे तो भी रात्रि में नव बजे से पहले तो अवश्य जीमा देना चाहिये।

सर्दी का मौसम हो तो 8 बजे रात्रि में जागरण प्रारम्भ करना उचित है तथा गर्मी का मौसम हो तो रात्रि में 9 बजे सत्संग प्रारम्भ कर दें। सत्संग शुरु होते ही प्रत्येक व्यक्ति को सावधानी पूर्वक बैठकर सत्संग का लाभ उठाना चाहिये। सबसे पहले "सन्ध्या सुमिरण आरती भजन भरोसे राख" आरती (स्तुति) बोलना उचित है। तदुपरान्त 'गुरु आप समराथल आये हो' इस धुन को बोलें । पुनः 5 या 7 श्रारतो बोलकर जुमले की सात या नव साखियां बोलना लाभदायक है। बोलने व सुनने वालों में प्राचीन सन्तों व श्री जम्भेश्वर भगवान् में श्रद्धा होना आवश्यक है। रात्रि में 12 बजे आरती बोलकर नींद से छुटकारा पा लेना आवश्यक है। खड़े होकर एक स्वर में आरती बोलने से परमात्मा की शक्ति हमारे अन्तकरण में प्रवेश हो जाती है। यदि सम्पूर्ण रात्रि जागरण लगाने का विचार हो तो कम से कम 5-6 गाने वाले सन्तों व गायलों को सादर निमन्त्रण देकर बुला लेना चाहिये । यदि दो या तीन व्यक्ति गाने बजाने वाले मिले तो सुविधा के अनुसार दो या तीन बजे रात्रि में आरती बोलकर जागरण पूर्ण कर देना उचित है। यदि माताएँ व बहनें दो बजे के बाद हरिजस आदि बोलकर जागना चाहें तो भी उचित ही है। यदि जागरण सुनने वालों की संख्या कम हो तो रात्रि में एक बजे के बाद सत्संग करना कोई विशेष फलदायक नहीं होता। यदि कोई एक व्यक्ति कहे कि मैं आप लोगों के पास बैठा साखियां व भजन सुन रहा हूँ आप लोग (सन्त व गायणा) सारी रात माते रहें तो यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि इसमें गाने बालों को शारीरिक तथा मानसिक कष्ट होता है तथा घर वालों को कोई लाभ नहीं होता ।

    जागरण सुनने व सुनाने वालों को ब्रह्म मुहूर्त में चार या पांच बजे अवश्य स्नान कर लेना चाहिये। स्नान कर थोड़ा बहुत नित्यकर्म (पाला फेरना, ध्यान करना आदि) कर लेना श्रेयस्कर है। सूर्य निकलने से पहले हवन स्थल को झाड़ आदि लगाकर ठीक कर लेना उचित है। यदि मिट्टी, तांबे, लोहे या पीतल की तापणी (हवनकुण्ड) हो तो उसे साफ कर उसमें कु कु धादि से स्वस्तिक चिन्ह व ओ३म् को लिखकर उसर्वे धूपिया से या खोपरों व लकड़ियों पर कपुर रखकर हवन प्रारम्भ करें। बड़ी तापणी (हवनकुण्ड) न उपलब्ध हो तो स्वच्छ मिट्टी साकर हवन वेदो बनाकर, उस पर यथा विधि हवन प्रारम्भ करें । हवन प्रज्वलित होते ही बिश्नोई परम्परा के अनुसार 'देव दर्शणा, पुण्य पर्शरणा, पाय नाशणा, देख्या देव का मुख, भाग्या जन्म-जन्म का दुःख दिठी ज्योत भागी छोत, ओम् श्री जम्सेश्वर गुरवे स्वाहा' बोलकर प्रथम श्राहुति देना लाभदायक है। यथा शक्ति सामग्री को कम या अधिक कर सकते हैं तथापि यदि 120 शब्दों के द्वारा हवन करवाना हो तो 1 किलो शुद्ध गाय का घी अवश्य कपड़े से छानकर तैयार रखना चाहिये। जिसके घर पर हवन हो उसे सफेद-स्वच्छ कपड़े पहन कर, सिर पर साफा (पोतिया) बांधकर, ठोक ढंग से बैठकर सम्पूर्ण हवन में आहुति देना चाहिये। घर वाले को २ घंटे के लिए सारा कार्य दूसरे भाई बन्धुओं को सौंपकर मौन होकर श्रद्धा पूर्वक अग्नि में आहुति देना चाहिये। श्री अम्भेश्वर भगवान् ने अन्तरध्यान होने से पूर्व अपने भक्तों को कहा था कि आप भक्त (सन्त) लोग मेरा दर्शन प्रज्वलित हवन की अग्नि में कर लेना। अतः सभी व्यक्तियों की एष्टि हवन की अग्नि की ओर होना श्रेयस्कर है। वन एक सात्विक कृस्य है तथा ग्रमल, तम्बाकू, चाय, भांग, शराब, गांजा श्रादि का नशा तामसी है। अतः हवन के सात्विक फल (परमात्मा की कृपा रूप मुक्ति व सुख समृद्धि) की अभिलाषा हो तो हवन करवाने वाला व्यक्ति न तो स्वयं किसी प्रकार का नशा करे तथा न दूसरों को करावे।

    पाहल के लिए मिट्टी का कोरा घड़ा प्रथवा मटकी स्वच्छ नये नातरणे से छानकर, जल से भर कर लायें। घड़े को हवन कुण्ड को ईशान कोण की ओर बाजरी (ग्रन्न) पर रखना चाहिये। घड़े के ऊपर स्वच्छ नातखा व नारियल रखना चाहिये पाहल के घड़े के किसी भी व्यक्ति का पर बा पल्ला लगना अनुचित है। ज्योत प्रारम्भ होते हो थोड़े-बहुत बंदिक मन्त्र बोलकर गायत्रि मन्त्र बोलकर, गोत्राचार बोलकर श्री जम्नेश्वर भगवान् के मुख से बोले हुए शब्द बोलना प्रारम्भ कर देना चाहिये। सबसे पहले 'गुरु चोन्हों' इस शब्द को बोलकर कम से सभी शब्द बोल सकते हैं। शुक्ल हंस 'श्री गढ़ झाल.....' शब्द को अन्त में बोलना चाहिये।

    श्री विष्णु भगवान् के अवतार श्री जम्भेश्वर भगवान् के कथनानुसार हवन, जप करने वाले व्यक्ति को छोटे 2 देवताओं को पूजने की आवश्यकता नहीं पड़ती। श्रतः बिश्नोइयों को 29 धर्मों के अनुसार जीवन व्यतीत करना चाहिये तथा आन देवताथों की पूजा छोड़ देना चाहिये। शब्द पूर्ण होने पर यज्ञ भगवान् को खीर, हलवा, चूरमे आदि का भोग लगाना चाहिये। उसी समय चौमुखा दीपक बनाकर खड़े होकर भारती बोलना उचित है। पाहल करने के लिए योग्य सन्त व भक्त की आवश्यकता होती है। जो सन्त अथवा गायणा पूर्ण श्रद्धा से 29 नियमों को पालन करने वाला हो, किसी भी प्रकार का नशा न करता हो, पाहल मन्त्र कलश पूजा के मन्त्रों को पूर्णतया बोल जानता हो उसे पाहल करने का अधिकारी समझना चाहिये। इसी प्रकार जो भक्त चोरी, छल कपट से रहित हो, नशे की वस्तुओं का प्रयोग न करता हो उसे घड़े पर हाथ रखकर पाहल करवाने का अधिकार है।

    पाहल बनने के पश्चात् सभी व्यक्तियों को क्रम से पाहल लेकर अग्नि में आहुति लगाना चाहिये। यदि कोई व्यक्ति नियमों से गिर गया हो तो वह पुनः श्री जम्भेश्वर भगवान् की ज्योति के आगे हाथ जोड़कर नियम ले कि मैं भविष्य में किसी प्रकार का नशा नहीं करूंगा, समाज विरुद्ध चोरी, छल, कपट आदि के कार्य नहीं करूंगा। श्री जम्भेश्वर भगवान् ने स्वयं अपने मुख से कहा है कि "पाहल गति गंगा तणी जे कर जारी कोय" जो व्यक्ति ठीक ढंग से पाहल कर तदुपरान्त दूसरे भक्तों को नियम पूर्वक पाहल देता है। उसके लिए पाहल गंगाजल से भी बढकर पवित्र है। प्रातःकाल हवन के पश्चात् दो या तीन साखियां बोल लें तो भी ठीक है। जिस दिन हवन व जागरण हो उस दिन सिनेमा के अश्लील गाने व भोमिया आदि छोटे २ देवताओं के भजन बोलना अनुचित है।

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