गुरु जम्भेश्वर का जीवन परिचय | Biography of Guru Jambheshwar

गुरु जम्भेश्वर (जांभोजी): बिश्नोई धर्म के संस्थापक, पर्यावरण प्रेणता (Guru Jambheshwar: Founder of Bishnoi religion, environmentalist)

श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान (Guru Jambheshwar Bhagwan) का जन्म 1451 ईस्वी में राजस्थान के पीपासर गांव में हुआ था गुरु जम्भेश्वर जी (Jambheshwar Ji) ने हिन्दू धर्म के अंतर्गत एक नवीन सम्प्रदाय “बिश्नोई“ की स्थापना। जम्भेश्वर जी ने अपने उपदेशों में 29 नियम, 120 शब्दों की शब्दवाणी देकर हमें एक नये समाज को दिशा प्रदान की। उन्होनें 51 वर्षों तक भारत भ्रमण, उपदेश, चमत्कार, अहिंसा, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक सुधार का कार्य किया। 1536 ईस्वी में लालासर में परलोग भगवान विष्णु के रूप में अजेय हो गये।

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गुरु जम्भेश्वर भगवान का जीवन इतिहास (Life history of  Guru Jambheshwar Bhagwan}:

सर्वविदित है कि 1501 से 1506 तक गाँव पीपासर में भयंकर अकाल का दौर था। इस क्षेत्र में पशुओं और मनुष्यों के लिए जीवनयापन अत्यंत कठिन हो गया था। अकाल की विभीषिका से त्रस्त होकर, पीपासर के लोग अपने ठाकुर लोहटजी के पास एकत्रित हुए और कहीं गोवल ले जाने की योजना बनाने लगे।

इसी दौरान, द्रोणापुर का एक राहगीर वहां से गुजर रहा था। उसने पीपासर के लोगों को बताया कि आपके ठाकुर लोहट जी के ससुराल द्रोणापुर में बहुत अच्छी वर्षा हुई है और वहां की स्थिति सुखद है। राहगीर की बात सुनकर, पीपासर के लोगों ने गोवल  कहीं ओर ले जाने की बजाय द्रोणापुर जाने का निर्णय लिया।

पीपासर के लोगों का द्रोणापुर की ओर प्रस्थान:

राहगीर की बात पर ठाकुर लोहट जी एवं ग्रामीणों ने विचार-विमर्श कर द्रोणपुर जाने का निश्चय किया। द्रोणापुर की ओर प्रस्थान करते हुए, पीपासर के लोगों को आशा की किरण दिखने लगी। वे जानते थे कि द्रोणापुर में उन्हें भोजन और पानी की कमी नहीं होगी और वे वहां शांति से जीवनयापन कर सकेंगे। पीपासर नगर के सभी नर-नारी द्रोणापुर के ठाकुर मोकमसिंह भाटी के वहाँ चले गए जो लोहट जी के ससुर थे। लोग वहां पर खुशी से रहने लगे तथा अपनी गायें चराने लगे।

लोहट जी और जोधा जाट:

एक दिन, गाँव द्रोणापुर में भयंकर तूफान आया। तूफान के कारण लोहट जी की गायें बिछुड़ गयीं। रातभर बरसात होती रही। सुबह प्रातः काल, लोहट जी अपनी गायों को ढूंढने का विचार करके घर से निकल पड़े। थोड़ी दूर चलने के बाद, लोहट जी की मुलाकात जोधे जाट से हुई। जोधे जाट अपने पुत्र के साथ खेत में बीज बोने जा रहे थे। लोहट जी को सामने आते देखकर, जोधे जाट बिना कुछ बोले वापस अपने घर की ओर जाने लगा।

जोधे जाट को अपशकुन:

जोधे जाट को वापस जाते देख लोहट जी ने पूछा,

"म्हाने देख पाछो कइयां जावे?"

तब जोधे जाट ने कहा कि लोहट जी, एक तो आप गाँव के ठाकुर हो। जब बुवाई करने जाते वक्त अगर सर पर बिना पगड़ी के गाँव के ठाकुर मिल जाये तो सुगुन अच्छा नहीं माना जाता। दूसरी बात, आप गाँव के जंवाई हो। बुवाई करने जाते समय अगर सामने गाँव का जंवाई मिल जाये तो भी सुगुन अच्छा नहीं माना जाता। तीसरी बात, आप बांज्या (निःसंतान) हैं। अगर बुवाई पर जाते समय बांज्या का मिलना भी अपशकुन होता है।

लोहट जी की तपस्या:

जोधे के मुख से "बांज्या" सुनते ही लोहट जी के ह्रदय को गहरा आघात पहुंचा। संतान प्राप्ति के लिए लोहट जी अन्न-जल त्याग कर भगवान से प्रार्थना करने वहीं पर बैठ गए। इस प्रकार लोहट जी छ: मास तक लगातार तपस्या करते रहे।

भगवान विष्णु का वरदान:

एक दिन संवत् 1507 ईस्वी में विष्णु भगवान ने ठाकुर लोहट जी पंवार को साधु के वेष में दु्रणपुर (छापर) के जंगल में दर्शन देकर भिक्षा मांगी तथा बिना ब्याई बछिया का दुध पिया तथा पुत्र वरदान दिया। फिर गोवलबास में माता हंसा को साधु वेष में दर्शन दिया, भिक्षा प्राप्त की तथा पुत्र वरदान दिया।

गुरु जम्भेश्वर भगवान का जन्म (Birth of Guru Jambheshwar: Bhagwan):

विष्णु भगवान द्वारा सतयुग में भक्त प्रहलाद को दिये वचन को पूरा करने, कृष्ण अवतार के समय श्री कृष्ण द्वारा नंद बाबा और माता यशोदा को दिए गए वचनों को पूरा करने, लोहट जी और माता हंसा देवी को दिये पुत्र वरदान के वचन को पुरा करने एवं कलयुग में बारह करोड़ जीवों का उद्धार करने के लिए जम्भेश्वर जी का जन्म 1508 भादवा वदी अष्टमी, वार-सोमवार के दिन कृतिका नक्षत्र में, पीपासर गाँव में, लोहट जी और माता हंसा देवी के घर हुआ।

जम्भेश्वर जी का मौन रहस्य:

जम्भेश्वर जी ने 7 वर्ष तक मौन रहकर बाल लीला का कार्य किया। इस दौरान, लोग उन्हें गूंगा और गहला समझने लगे। लेकिन, वे ऐसे कार्य करते थे जो लोगों को चकित कर देते थे। कुछ लोगों का अनुमान है कि इसी कारण उन्हें जाम्भा (अचम्भाजी) भी कहा जाने लगा।

गाय चराने का कार्य:

जब श्री गुरु जम्भेश्वरजी 7 वर्ष के हुए, तब उन्हें गाय चराने का काम सौंपा गया। वे अपनी गायों को आसपास के जंगलों में चराया करते थे।

गुरु गोरखनाथजी से मुलाकात:

जब वे लगभग 16 वर्ष के हुए, तब उनकी मुलाकात गुरु गोरखनाथजी से हुई। उन्होंने गुरु गोरखनाथजी से ज्ञान प्राप्त किया।

अखंड ब्रह्मचारी:

जम्भेश्वर जी का जन्म कलयुग में बारह करोड़ जीवों का उद्धार करने के लिए हुआ था। उन्होंने अपना जीवन धर्म प्रचार और सामाजिक सुधार के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने विवाह नहीं किया और वे अखंड ब्रह्मचारी रहे।

माता-पिता का देहांत:

उनके पिता लोहटजी का देहांत संवत् 1540 में हो गया था। कुछ समय बाद उनकी माता हांसादेवी भी चल बसीं।

गुरु जम्भेश्वर का समराथल धोरे पर आगमन:

माता-पिता के स्वर्ग सिधारने के बाद गुरु जम्भेश्वर जी ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति को त्याग दिया और विक्रमी संवत् 1542 में समराथल धोरे पर हरी कंकेड़ी के नीचे आसन लगाया।

विश्नोई संप्रदाय की स्थापना:

समराथल पर रहते हुए, उन्होंने संवत 1542 की कार्तिक वदि अमावस्या सोमवार के दिन, विश्नोई संप्रदाय को बीस और नव धर्मो की शिक्षा दी और वेदों और मंत्रों द्वारा पाहाल कलश की स्थापना करके पाहाल रुपी अमृत पिलाया। जब से विशनोई समाज प्रारंभ हुआ।

लोगों की सहायता:

उन दिनों में, उन्होंने अकाल पीड़ितों और गरीबों की अन्न-दान से सहायता कर धर्म के मार्ग पर लगाकर उनका उद्धार किया। 

120 अनमोल शब्द 'शब्दवाणी' :

उन्होंने बहुत जनसमूहों में उपस्थित होकर सर्व मानव मात्र को मुख्य कर्तव्यों का साक्षात परीक्षात्मानुभव का उपदेश देते समय 120 से भी अधिक अनमोल शब्द कहे थे। वर्तमान में, इन शब्दों में से 120 शब्द ही उपलब्ध हैं जिन्हें "जंभवाणी" या "शब्दवाणी" के नाम से जाना जाता है। "शब्दवाणी" में गुरु जम्भेश्वर जी ने ईश्वर की भक्ति, सामाजिक बुराइयों से दूर रहने, और प्रकृति के प्रति सम्मान रखने की शिक्षा भी दी है। शब्द वाणी का पाठ आज भी प्रेम पूर्वक हर घर में मन्दिरों में हवन इत्यादि करते समय किया जाता हैं। 

अंतर्ध्यान:

देश विदेशों में भ्रमण करते हुए लोगों को बिश्नोई पंथ का उपदेश दिया। गांव लालासर में विक्रमी संवत् 1593 इस्वी मिंगसर बदी नवमी को अंतर्ध्यान हो गए।

जाम्भोजी का संक्षिप्त जीवन परिचय:

  • जन्म: वि. संवत् 1508 (सन् 1451) भाद्रपद बदी 8 कृष्णजन्माष्टमी को अर्द्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में ।

  • ग्राम: पींपासर जिला नागौर (राज.)
  • पिताजी: ठाकुर श्री लोहटजी पंवार
  • काकाजी: श्री पुल्होजी पंवार, इनको प्रथम बिश्नोई बनाया था।
  • बुआ: तांतूदेवी
  • दादाजी: श्री रावलसिंह सिरदार (रोलोजी) उमट पंवार ये महाराजा विक्रमादित्य के वंश की 42वीं पीढ़ी में थे।
  • ननिहाल: ग्राम छापर (वर्तमान तालछापर), जिला चुरू (राज.) 
  • माताजी: हंसा (केसर देवी)
  • नानाजी: श्री मोहकमसिंह भाटी (खिलेरी)

गुरु जाम्भोजी से प्रभावित होकर शरण में आए राजा:

संत कवि वील्होजी (सन् 1532 - 1616) द्वारा रचित "कथा जैसलमेर की" एक प्रसिद्ध कविता है, जिसमें गुरु जाम्भोजी के समकालीन छह राजाओं का उल्लेख है जो उनकी शरण में आए थे। ये राजा थे:

  • सिकन्दर लोदी, दिल्ली का बादशाह
  • नवाब मुहम्मद खाँ नागौरी, नागौर
  • राव दूदा, मेड़ता
  • राव जैतसी, जैसमलेर
  • राव सातल देव, जोधपुर
  • महाराणा सांगा, मेवाड़

कविता में, वील्होजी इन राजाओं के चरित्र और गुरु जाम्भोजी के प्रति उनकी श्रद्धा का वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि कैसे इन राजाओं ने गुरु जाम्भोजी की शिक्षाओं को अपनाकर अपना जीवन बदल दिया।

यह कविता गुरु जाम्भोजी के प्रभाव और उनके दर्शन की लोकप्रियता का प्रमाण है। यह दर्शाता है कि कैसे गुरु जाम्भोजी ने केवल आम लोगों को ही नहीं, बल्कि राजाओं को भी अपनी शिक्षाओं से प्रेरित किया।

गुरु जांभोजी से संबंधित स्थल:

गुरु जांभोजी से संबंधित अनेक स्थल हैं जो उनके जीवन और शिक्षाओं से जुड़े हुए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्थल इस प्रकार हैं:-

  1. पीपासर
  2. समराथल
  3. मुक्तिधाम मुकाम
  4. लालसर
  5. जाम्बा/जाम्भोलाव
  6. जांगलू
  7. रामड़ावास
  8. लोदीपुर
  9. रोटू
  10. खेजड़ली धाम

इनके अलावा भी गुरु जांभोजी भगवान के मंदिर/साथरी गांव-गांव बने हुए हैं।

निष्कर्ष:

  • श्री गुरु जम्भेश्वरजी एक महान संत थे जिन्होंने समाज को अनेक शिक्षाएं दीं और लोगों को धर्म मार्ग पर लाने का कार्य किया।
  • पीपासर में अकाल और द्रोणापुर की यात्रा, श्री गुरु जम्भेश्वरजी के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस घटना ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला और उन्हें मानवता की सेवा करने के लिए प्रेरित किया।
  • श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान एक महान संत, समाज सुधारक, और पर्यावरण रक्षक थे। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं।

FAQ:

गुरु जांभोजी (Jambhoji) का प्रमुख कार्य क्षेत्र कौन सा प्रदेश रहा है?

राजस्थान राज्य का बीकानेर जिला।

मुकाम कौन से जिले में पड़ता है?

बीकानेर में।

जांभोजी का जन्म कब और कहां हुआ था?

वि. संवत् 1508 (सन् 1451) भाद्रपद बदी 8 कृष्णजन्माष्टमी को पींपासर जिला नागौर में जांभोजी का जन्म हुआ था।

जांभोजी की जाति क्या है?

जांभोजी की जाति पंवार (राजपुत) थी।

जांभोजी का मेला कब लगता है?

जांभोजी के मुक्तिधाम मुकाम नोखा बीकानेर में हर वर्ष मुख्य रूप से दो मेले लगते हैं।- फाल्गुन की अमावस्या पर एवं आसोज की अमावस्या पर।

जांभोजी के गुरु का क्या नाम है?

जांभोजी एक स्वयंभू संत थे, जिन्हें किसी अन्य गुरु से शिक्षा नहीं मिली थी। हालांकि, कुछ लोगों का मानना ​​है कि जांभोजी को गुरु गोरखनाथ से शिक्षा मिली थी।

जांभोजी के बचपन का नाम क्या था?

श्री जम्भदेव चरित्र भानु के अनुसार जांभोजी का बचपन का नाम जम्भराज था।

जांभोजी के शिष्य कौन थे?

रणधीरजी जांभोजी के प्रिय एवं अधिकारी शिष्य थे। संदर्भ - जांभोजी की वाणी पुस्तक।

जांभोजी किसका अवतार है?

जांभोजी आदि परम शक्ति बिशन (विष्णु) के अवतार थे।


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