मुकाम मंदिर का परिचय:
श्री गुरु जम्भेश्वर (जांभोजी) को विक्रम सम्वत् 1593 (1536 ई.) मिगसर बदी 9 को बैकुण्ठवास के बाद तालवा गांव के निकट मुकाम में एकादशी के दिन समाधि दी गईं। उनके पवित्र शरीर का अन्तिम पड़ाव होने से यह तीर्थ मुकाम के नाम से विख्यात है तथा समाज में यह आम धारणा है कि यहां निष्काम भाव से सेवा करने वालों को मुक्ति मिलती है। इसीलिए इसका नाम मुक्तिधाम मुकाम (Mukti Dham Mukam) है।
गुरु महाराज ने निर्वाण से पूर्व खेजड़ी तथा जाल के वृक्ष को अपनी समाधि का चिन्ह बताया। उनके अनुसार ठीक उसी स्थान पर जहां आज समाधि है। उनको समाधि देने के लिए खोदने के दौरान 24 हाथ नीचे एक त्रिशूल मिला जो कि आज भी निज मन्दिर मुक्तिधाम मुकाम पर लगा हुआ है।
विक्रम संवत् 1593 (1536 ईस्वी) में पौष सुदी द्वितीया सोमवार को मुकाम मंदिर की नींव रखी गई। रणधीर जी बाबल, जो जांभोजी महाराज के प्रिय शिष्य थे, ने चार साल बाद चैत्र सुदी सप्तमी शुक्रवार (1540 ईस्वी) को मंदिर का निर्माण पूरा करवाया (तैयार हो गया)।
मुक्तिधाम मुकाम मंदिर |
निज मन्दिर :
वर्तमान में समाधि पर बने मन्दिर का जीर्णोद्धार कर एक भव्य मन्दिर का निर्माण किया गया है। इस मन्दिर को निज मन्दिर कहते हैं।
मुक्तिधाम मुकाम मंदिर की स्थिति :
- गाँव का पुराना नाम : तालवा गांव
- गाँव का वर्तमान नाम : मुकाम (गुरु जम्भेश्वर भगवान के पवित्र शरीर का अन्तिम पड़ाव होने से यह तीर्थ मुकाम के नाम से विख्यात है)
- तहसील: नोखा जिला : बीकानेर
- स्थिति : मुकाम, बीकानेर जिल की नोखा तहसील के मुकाम गांव में स्थित है। जो नोखा से लगभग 16 कि.मी. दूर हैं। तथा जिला मुख्यालय बीकानेर से 63 किलोमीटर दूर है।
मुक्तिधाम मुकाम मेला :
- फाल्गुन की अमावस्या पर
- आसोज की अमावस्या पर