जाम्भोलाव धाम: बिश्नोई समाज का अष्ट धामों में से एक पवित्र तीर्थस्थल

परिचय:

जांभोलाव धाम, जिसे जम्भसरोवर, कपिल सरोवर, विसन तीरथ, विसन तालाब, कलियुग का तीर्थ एवं यति तीर्थ शिरोमणी जाम्भोलाव धाम भी कहा जाता है, बिश्नोई समाज का अष्ट धामों में से एक पवित्र तीर्थस्थल है।
जम्भ सरोवर तालाब एवं गुरु जम्भेश्वर मंदिर जाम्बा
जम्भ सरोवर तालाब एवं गुरु जम्भेश्वर मंदिर जाम्बा का दृश्य

स्थिति:

यह धाम राजस्थान के फलोदी जिले में, फलोदी शहर से लगभग 20 किलोमीटर पूर्व में स्थित है। यहाँ एक विशाल तालाब है जिसे जम्भ सरोवर या जांभोलाव तालाब के नाम से जाना जाता है। यह तालाब गुरु जम्भेश्वर जी द्वारा खुदवाया गया था।

महत्त्व:

  • जांबा मंदिर में सफेद मकराने के पत्थर का एक सिंहासन है, जिस पर बैठकर गुरु जम्भेश्वर जी तालाब की खुदाई का कार्य देखते थे।
  • यहाँ साधुओं की दो परम्पराएं हैं - आगूणी जागां और आथूणी जागां।
  • तालाब के पास एक शिलालेख है जिस पर पशुओं की कर माफी का उल्लेख है।
  • कहा जाता है कि इस स्थान पर पूर्व में महात्मा कपिल मुनि ने तपस्या की थी और वनवास काल के दौरान पाण्डवों ने भी यज्ञ किया था।
  • कलियुग में इसे गुरु जम्भेश्वरजी ने प्रकट किया था।

मेले:

यहाँ वर्ष में दो मेले लगते हैं:

  • चैत्र मेला: यह मेला चैत्र अमावस्या को लगता है। इसकी शुरुआत संवत् 1648 में संत वील्होजी महाराज ने की थी।
  • माधा मेला: यह मेला भाद्रपद (भादवा) की पूर्णिमा को लगता है। इसकी शुरुआत भी संत वील्होजी महाराज ने पली गांव के माधो जी गोदारा के सहयोग से की थी। इसलिए इसे माधा मेला के नाम से जाना जाता है।

धार्मिक महत्व: 

  • जांभाणी संतों ने इस तीर्थ का महत्त्व अड़सठ तीर्थों से भी अधिक माना है।
  • यहाँ आने वाले श्रद्धालु तालाब में स्नान करते हैं, तालाब से मिट्टी निकालते हैं, साधुओं को भोजन कराते हैं और सूत फिराते हैं।
  • कई श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु इसमें स्नान करते हैं और मिट्टी निकालने की जात बोलते हैं।
  • सामाजिक महत्व:बिश्नोई समाज में जांबा के किये गये फैसले को अन्तिम माना जाता रहा है।
  • मंदिर व तालाब की व्यवस्था बदलती रहती हैं। यह व्यवस्था आधे वर्ष आथूणी जागां और आधे वर्ष अगुणी जागां के सन्त करते हैं।

निष्कर्ष:

जांभोलाव धाम बिश्नोई समाज का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहाँ का तालाब, मंदिर और मेले श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। यह स्थान धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

FAQ:

जांभा मेला कब भरा जाता है?

चैत्र की अमावस्या पर एवं भाद्रपद भादवा की पूर्णिमा पर।

जांभा का मेला कब लगता है?

हर वर्ष चैत्र की अमावस्या पर एवं भाद्रपद भादवा की पूर्णिमा पर दो मेले लगते हैं।

2024 का जांभा मेला कब है? 

पहला चैत्र मेला : 8 अप्रैल 2024 (सोमवार) को मेला लगेगा। चैत्र अमावस्या 8 अप्रैल को सुबह 3 बजकर 21 मिनट पर प्रराम्भ होगी और 8 अप्रैल की रात्रि को 11 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगी।

दुसरा भाद्रपद मेला : 17 सितंबर 2024 को भाद्रपद पूर्णिमा के दिन मेला लगेगा। पूर्णिमा 17 सितंबर 2024 को 11 बजकर 46 मिनट पर आरम्भ होगी और 18 सितंबर 2024 दिन बुधवार को सुबह 08 बजकर 06 मिनट पर पूर्णिमा तिथि की समाप्ति होगी।

जांभा मंदिर कहां है?

यह मंदिर गावं जांभा, तहसिल फलोदी, जिला फलोदी (राजस्थान) में स्थित है।

जांभा मंदिर का निर्माण किसने शुरू करवाया था?

संत वील्होजी  ने

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