बिश्नोई आंदोलन: अमृता देवी बिश्नोई का बलिदान

बिश्नोई आंदोलन (About Bishnoi Movement):

आज से लगभग 300 वर्ष पहले 17वीं शताब्दी में राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में रहने वाली एक बिश्नोई महिला अमृता देवी थीं जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए एक अद्वितीय और साहसी आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन 'पर्यावरण आंदोलन', 'बिश्नोई आंदोलन', बिश्नोई चिपको आंदोलन' अथवा 'खेजड़ली आंदोलन' के नाम से जाना जाता है।

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बिश्नोई आंदोलन | Bishnoi Movement
अमृता देवी बिश्नोई का  बलिदान -  बिश्नोई आंदोलन

अमृता देवी का बलिदान (Amrita Devi's Balidan / Amrita Devi Bishnoi Movement):

सन् 1730 ई में राजस्थान के मारवाड रियासत (जोधपुर) में महाराजा अभय सिंह के शासन काल में मेहरानगढ़ किले में फृल महल नाम से राजमहल निर्माण हेतु लकड़ियों की जरूरत होने पर मंत्री गिरधरदास भंडारी  सिपाहियों, कारिन्दों एवं मजदुरों को लेकर हेतु खेजड़ली गावं में खेजड़ी के वृक्षों को काटने पहुंचा।

उन्होंने रामू खोड के खेत में खेजड़ी के वृक्ष को काटना आरंभ कर दिया। रामू खोड की पत्नी अमृता बिश्नोई सहित गांव के बिश्नोईयों ने वृक्ष काटने का विरोध किया परन्तु भंडारी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होनें वृक्ष काटने  प्रारम्भ कर दिये। इस पर अमृता बिश्नोई पेड़ से चिपक गई और कहा कि पहले मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े होंगे इसके बाद ही पेड़ कटेगा।

जाम्भाजी री सौगन म्हाने हरयो रूंख नही बाढ़ण द्यूंली म्हुं थाने।

तू मंत्री है जोधाणै रो तो म्हूं बिश्नोई री बेटी हूं।

पत्तों ही नहीं बाढ़ण दयू म्हूं रूंख रूखाली बैठी हूं।

तू समझै आंरी पीड़ कांई तू तो गुलाम है रोटी रो।

हरे पेड़ों को काटने से बचाने के लिए, अमृता देवी बिश्नोई ने अपनी तीन बेटियों  रत्नी, आसू और भागू के साथ अपना बलिदान दे दिया। इसके बाद आस-पास के 84 गांवों के बिश्नोइयों ने वृक्षों की रक्षा के लिये प्राण न्यौछावर करने प्रारम्भ कर दिये। इस घटना की पूर्णहुति सन् 1730 ई की भादवा सुदि, 10, मंगलवार को हुई, जिसमें 363 स्त्री-पुरूष शहीद हो गये। इनमें 64 गोत्र के 94 महिलाएं व 269 पुरुष थे।

इसकी सूचना जब राजा अभय सिंह को मिली तो उन्हें काफी सदमा पहुंचा, उन्होंने यहां आकर बिश्नोई समाज से माफी मांगी।

महा इण पाप मुक्ति दैरावो, श्री गुरू जम्भेश्वर क्षमा बिगसावो, सतगुरू धन्य धन्य बै चेला, गुरू आदेश प्राण पर खैल्या।

जीव दया बिरछां री पूजा, सरिस धरम न कोई  दूजां जै चावै निज धरा बचाणी, विष्णु! विष्णु! तूं भज रे प्राणी।

उन्होंने ताम्र पत्र देकर पूरे बिश्नोई समाज को आश्वासन दिया कि उनके क्षेत्र में अब कोई पेड़ नहीं कटेगा एवं वन्य जीवों का शिकार नहीं करेगा।

बिश्नोई चिपको आंदोलन (Chipko Movement of Bishnoi):

खेजड़ली वह जगह है जहाँ से चिपको आंदोलन (Chipko Movement of Bishnoi) की उत्पत्ति भारत में हुई थी।अमृता देवी ने हरे पेड़ों को काटने से बचाने के लिए कहा कि– 

सिर साटे, रूंख रहे, तो भी सस्तो जांण

 अर्थात

"किसी इंसान के जीवन की कीमत पर भी एक हरा वृक्ष बचाया जाता है, तो वह सही है।”

क्योंकि बिश्नोई धर्म के गुरू जम्भेश्वर भगवान ने कहा था– 

जीव दया पालणी, रूंख लीलो न घावें

अर्थात

“जीव मात्र के लिए दया का भाव रखें, और हरा पेड़ नहीं काटे”

बरजत मारे जीव, तहां मर जाइए

अर्थात

“जीव हत्या बंद करने के लिये समझाने-बुझाने, अनुनय-विनय करने के बाद भी, सफलता नहीं मिले, तो स्वयं आत्म बलिदान कर दें”

इन्हीं गुरू महाराज जांभोजी के उपदेशों का पालन करते हुए अमृता देवी सहित 363 बिश्नोई लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान का बलिदान दिया। यहां शहीदों की स्मृति में एक अमृता देवी शहीद स्मारक (Amrita Devi Martyr Memorial) बना हुआ है।

अमृता देवी शहीद स्मारक
अमृता देवी शहीद स्मारक 

खेजड़ली मेला (Khejarli Fair):

इन शहीदों की याद में खेजड़ली गांव में सन् 1978 ई से भादवा सुदि 10 वीं को मेंले का निरन्तर आयोजन हो रहा हैं। इस मेले का प्रारम्भ करवाने में सन्तकुमार जी राहड़ का विशेष योगदान रहा है। यह मेला बिश्नोई समाज के वृक्ष-प्रेम का प्रतीक है।

बिश्नोई आंदोलन का संक्षिप्त परीचय (Overview of Bishnoi Movement): 

  • दिनांकः 12 सितंबर, 1730
  • स्थानः राजस्थान के जोधपुर जिले का खेजड़ली गांव
  • नेतृत्व कर्ताः अमृता देवी बिश्नोई
  • मुख्य परिणामः
    • इस घटना के बाद, जोधपुर के महाराजा ने माफी मांगी और एक ताम्रपत्र (शाही उद्घोषणा) जारी की जिसमें बिश्नोई समुदाय बाहुज्य गांवों में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी गई। 
    • भारत सरकार, राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकार ने वन्यजीवों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण में योगदान के लिए अमृता देवी की साहसी भावना को क्रमशः “अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार“ और “अमृता देवी बिश्नोई स्मृति पर्यावरण पुरस्कार“ से सम्मानित किया।
    • इस आंदोलन और बलिदान ने 20वीं सदी के चिपको आंदोलन को भी प्रेरित किया।

अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार (Amrita Devi Bishnoi Award):

अमृता देवी बिश्नोई पुरस्कार, सर्वप्रथम सन् 1980 में ’द मीडिया फांउडेशन’ के द्वारा वन्य जीव संरक्षण में उत्कृष्ट सेवा के लिए शुरू किया गया था। तत्पश्चात् सन् 1994 में राजस्थान सरकार एवं सन् 2001 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा राज्य स्तर पर ’अमृता देवी बिश्नोई स्मृती पर्यावरण पुरस्कार’ की शुरूआत की गई। सन् 2001 में केन्द्र सरकार ने केन्द्रिय स्तर पर अमृता देवी बिश्नोई पर्यावरण संरक्षण पुरस्कार देने की घोघणा की, जो 29 मई, 2003 को प्रदान किया गया। यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष प्रदान किये जाते हैं।

राष्ट्रीय स्तरीय पुरस्कार: अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार-

अमृता देवी बिश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार,भारत सरकार द्वारा वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में असाधारण योगदान देने वाले व्यक्तियों और संगठनों को सम्मानित करने के लिए दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने वन्यजीव संरक्षण में अनुकरणीय साहस और कार्य किया है। पुरस्कार स्वरूप 1,00,000/- रुपये नकद, एक प्रशस्ति पत्र एवं मेडल प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार की शुरूआत सन् 2001 में भारत सरकार द्वारा की गई थी।

प्रथम अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार राजस्थान के जोधपुर जिले के चिराई गांव के गंगाराम बिश्नोई को मरणोपरांत प्रदान किया था। यह पुरस्कार गंगाराम की धर्मपत्नि किशनीदेवी को 29 मई, 2003 को केन्द्रिय वन एवं पर्यावरण मंत्री श्री टी.आर. बालू द्वारा नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में प्रदान किया गया था।

राज्य स्तरीय पुरस्कार: अमृता देवी बिश्नोई स्मृति पर्यावरण पुरस्कार

राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकार के वन विभाग ने वन रक्षा और संवर्धन तथा वन्य जीव रक्षा एवं संवर्धन के क्षेत्र में अति विशिष्ट और उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्थाओं और शासकीय, अशासकीय व्यक्तियों को पुरस्कृत करने के लिये राज्य स्तरीय अमृता देवी विश्नोई स्मृति पुरस्कार शुरू किया है। पुरस्कार में नकद राशि और प्रशस्ति पत्र शामिल है।

राजस्थान सरकार द्वाराः सिर कटवा कर वृक्षों की रक्षा करने के अद्भुत बलिदान की प्रणेता श्रीमती अमृता देवी की स्मृति में प्रदेश में वनों एवं वन्यजीवों की सुरक्षार्थ सर्वोत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्थाओं/व्यक्तियों के लिए राज्य सरकार द्वारा अमृता देवी स्मृति पुरस्कार वर्ष 1994-95 से प्रारम्भ किया गया। 

प्रारम्भ के दो वर्षों में इस योजनान्तर्गत पुरस्कार स्वरूप प्रतिवर्ष 5000/- रुपये नकद एवं एक प्रशंसा पत्र ही दिया जाता रहा है, लेकिन इस वर्ष 1997-98 से पुरस्कारों की संख्या एवं पुरस्कार राशि में बढ़ोतरी की गई है। राज्य के दूरदराज क्षेत्रों में व्यक्तियों, विद्यार्थियों, सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं, ग्राम वन सुरक्षा एवं प्रबन्ध समितियों, ग्राम पंचायतों तथा अन्य विभिन्न संस्थाओं के वनों एवं वन्य जीवों की सुरक्षा, संवर्धन एवं उनके संरक्षण विषयक कार्यों को मान्यता प्रदान करने एवं जैव विविधता संरक्षण को जन आनदोलन का रूप देने के लिए राज्य स्तर पर प्रतिवर्ष निम्नानुसार पुरस्कार प्रदान किये जा रहे हैं :-

  • वन एवं वन्यजीव सुरक्षा, संवर्धन तथा संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने वाली ग्राम्य वन सुरक्षा एवं प्रबन्ध समिति, पंचायत, ग्राम स्तरीय संस्थाएं, नियमित क्षेत्र में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की संस्था को पुरस्कार स्वरूप 50,000/- रुपये नकद एवं एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।

  • वन सुरक्षा एवं संरक्षण विषयक सर्वोत्कृष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति को पुरस्कार स्वरूप 25.000/- नकद एवं एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।
  • वन्यजीव सुरक्षा एवं संरक्षण के क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ठ कार्य करने वाले व्यक्ति को पुरस्कार स्वरूप 25,000/ नकद एवं एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।

मध्यप्रदेश सरकार द्वारा: शहीद अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार मध्यप्रदेश शासन ने सन् 2001 से प्रतिवर्ष वन रक्षा एवं वन संवर्धन् के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्थाओं और व्यक्तियों के लिये शहीद अमृता देवी विश्नोई पुरस्कार दिये जाने का निर्णय लिया है। वर्ष 2001 से 2005 तक तीन वर्गों में पुरस्कार दिये गये हैं तथा 2006 से शासकीय एवं अशासकीय व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से पुरस्कृत किया जाने लगा।

वर्तनान में कुल पांच वर्गों में पुरस्कार दिये जा रहे है-
  • वन रक्षा एवं वन संवर्द्धन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्था को 1 लाख रुपये नगद एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।
  • वन रक्षा एवं संवर्द्धन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति (शासकीय एवं अशासकीय) को 50,000 - 50,000  रूपये नगद तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है। 
  • वन्यप्राणियों की रक्षा में अदम्य साहस व सूझबूझ का प्रदर्शन करने वाले व्यक्ति (शासकीय एवं अशासकीय) को 50,000 - 50,000 रूपये नगद एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।
पुरस्कार की राशि मध्य प्रदेश राज्य लघु वनोपज संच से प्राप्त होती है।

बिश्नोई आंदोलन के प्रमुख प्रभाव (Objectives of Bishnoi Movement):

  • खेजड़ी वृक्षों को काटने का आदेश रद्द कर दिया गया।
  • राजा ने भविष्य में पेड़ों को काटने पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • अमृता देवी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। इस घटना ने पूरे देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाई।
  • बिश्नोई समुदाय पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
  • यह आंदोलन आज भी प्रासंगिक है और हमें पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी का एहसास दिलाता है।
  • भारत सरकार, राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकार ने वन्यजीवों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण में योगदान के लिए क्रमशः "अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार" और "अमृता देवी बिश्नोई स्मृति पर्यावरण पुरस्कार" से अमृता देवी की साहसी भावना का सम्मान किया।

FAQ :

खेजड़ली दिवस कब मनाया जाता है?

भादवा सुदि 10 वीं को खेजड़ली दिवस मनाया जाता है।

अमृता देवी बिश्नोई (Amrita Devi Bishnoi) कौन थी?

अमृता देवी और 363 अन्य बिश्नोई समाज के लोगों ने पेड़ों से चिपककर अपनी जान कुर्बान कर दी थी। इसलिए अमृता देवी बिश्नोई को पर्यावरण रक्षा की देवी के रूप में जाना जाता है। उनका बलिदान और साहस हमें प्रेरणा देता है कि हमें पर्यावरण की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।

अमृता देवी बिश्नोई अवार्ड 2024?

अमृता देवी बिश्नोई अवार्ड 2024 के बारे में अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। अमृता देवी बिश्नोई पुरस्कार वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले व्यक्तियों या संस्थानों को दिया जाता है। आमतौर पर यह पुरस्कार हर साल सितंबर में वन्यजीव सप्ताह के दौरान प्रदान किया जाता है।

खेजड़ली आन्दोलन कब हुआ?

सन् 1730 ई की भादवा सुदि, 10, मंगलवार।

अमृता देवी बिश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार  कब दिया जाता है?

अमृता देवी बिश्नोई पुरस्कार वन्यजीव संरक्षण के लिए उन लोगों को दिया जाता है, जिन्होंने अनुकरणीय साहस और समर्पण दिखाया है। यह पुरस्कार भारत सरकार द्वारा वर्ष 2001 से प्रदान किया जा रहा है। इस पुरस्कार के रूप में एक लाख रुपये की राशि नकद प्रदान की जाती है।

अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार की राशि कितनी है?

एक लाख रुपये।

भारत सरकार द्वारा अमृता देवी बिश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार किस क्षेत्र में दिया जाता है?

अमृता देवी बिश्नोई पुरस्कार वन्यजीव संरक्षण के लिए  दिया जाता है।

राज्य स्तरीय अमृता देवी विश्नोई स्मृति पुरस्कार की राशि कितनी है?

50,000 रुपये और प्रशस्ति पत्र

What is the difference between Chipko movement and Bishnoi movement?

Chipko movement: Emerged in the 1970s in Uttarakhand, India, in response to deforestation caused by government-approved logging contracts.
Bishnoi movement: Rooted in the 1730s with the legendary sacrifice of 363 Bishnois in Rajasthan who hugged trees to protect them from being cut by a Maharaja.

What is Bishnoi Movement?

The Bishnoi Movement is one of the first documented acts of environmental activism, where villagers in Rajasthan hugged trees to save them from being cut down.

Who is associated with Bishnoi Movement?

Amrita Devi, a Bishnoi community leader, is most associated with the Bishnoi movement for sacrificing her life to protect trees.

Wow doed Bishnoi Movement started?

The Bishnoi movement arose in Rajasthan when villagers led by Amrita Devi hugged trees to stop them from being cut down by a Maharaja.

Where did Bishnoi Movement start?

The Bishnoi movement began in Khejarali Village, Jodhpur District, Rajasthan, India.

What is Bishnoi in Rajasthan?

In Rajasthan, Bishnoi refers to both a religious sect and their associated practices and culture. 
Bishnoi, established by Guru Jambheshwar in the 15th century. Follow 29 principles (29 Niyams) emphasizing non-violence, environmental protection, vegetarianism, and simplicity.

Which Bishnoi woman is connected to Chipko movement?

Amrita Devi Bishnoi.

What is Chipko Bishnois of Rajasthan?

Chipko Bishnoi  movement in Rajasthan share the goal of environmental conservation, Rooted in the 1730s with the legendary sacrifice of 363 Bishnois in Rajasthan who hugged trees to protect them from being cut by a Maharaja.

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