1965 में 1971 के भारत-पाक युद्ध के हीरो वीर चक्र एवं बार वीर चक्र अवॉर्डी, बिश्नोई समाज के जाबांज अफसर और वाइस मार्शल भूपेंद्र कुमार विश्नोई (AVM BHUPENDRA KUMAR BISHNOI) का नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में एक महान योद्धा के रूप में दर्ज है। उन्हें युद्ध में गतिशील नेतृत्व के लिए सदैव याद किया जाता रहेगा। उनकी विरासत हम सबको युगों-युगों तक प्रेरणा देती रहेगी।
AVM भूपेंद्र कुमार बिश्नोई का जीवन परिचय:
भूपेंद्र कुमार विश्नोई (Bhupendra K Bishnoi) का जन्म 17 मार्च 1934 को पंजाब प्रांत के अबोहर ज़िले के सीतागुणों गांव में हुआ था। उनके पिता राम प्रताप खीचड़ पंजाब पुलिस में उप अधीक्षक रहे, साथ ही उन्होंने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके बड़े भाई सुदर्शन बिश्नोई भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट थे। उन्होंने अपने आप को भारत माता की सेवा में न्योछावर कर दिया एवं अपना बलिदान इस देश हेतु दे दिया। पिता-भाई ने भूपेंद्र में अनुशासन व कर्तव्य की भावना पैदा की। सैन्य परंपरा से ओतप्रोत घर में पले-बढ़े बिश्नोई देश की सेवा करने के लिए आकर्षित हुए। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 10 अक्टूबर 1953 को भारतीय वायुसेना में शामिल हुए। 1965 तथा 1971 के युद्ध के दौरान अनैक ऑपरेशनों का प्रतिनिधित्व करते हुए असाधारण बहादुरी और कौशल का प्रदर्शन किया।
- नाम: भूपेंद्र कुमार बिश्नोई
- जन्म: 17 मार्च 1934, सीतोगुणो, अबोहर, पंजाब
- पिता: स्व. राम प्रताप खीचड़ (पंजाब पुलिस में उप-अधीक्षक)
- भाई: सुदर्शन कुमार बिश्नोई (भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट)
- निधन: 18 फरवरी 2023, 89 वर्ष की आयु में
- सम्मान और पुरस्कार
- वीर चक्र: 1965 युद्ध में वीरता के लिए
- वीर चक्र (बार): 1971 युद्ध में अद्वितीय साहस के लिए
शिक्षा और करियर:
उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लाहौर से की थी। देश के बंटवारे के समय उनका परिवार दिल्ली आ गया। उस समय वे दसवीं कक्षा में अध्ययनरत थे। आगे की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली से पूर्ण की। कॉलेज शिक्षा के दौरान एक बार उनके कॉलेज में भारतीय वायुसेना का मोटिवेशन सेमिनार आयोजित हुआ। इस कार्यक्रम से प्रेरित होकर उन्होंने वायुसेना में पायलट पद के लिए अपना आवेदन दाखिल किया। परीक्षा एवं साक्षात्कार के बाद उनका चयन पायलट पद हेतु हो गया।
10 अक्टूबर 1953 को पायलट फाइटर स्ट्रीम की ट्रेनिंग हेतु भारतीय वायुसेना में शामिल हुए। उनकी प्रारंभिक ट्रेनिंग और कौशल ने उन्हें एक उत्कृष्ट पायलट और फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर के रूप में देश को एक जांबाज़ योद्धा दिया।
अपॉइंटमेंट और पोस्टिंग:
सन 1959 तक, बी.के. बिश्नोई (B.K. Bishnoi) को तांबरम में फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर स्कूल में ए-1 फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर नियुक्त किया गया। यह पद उस समय 10 से भी कम इंडियन एयर फोर्स अधिकारियों द्वारा निभाया जाने वाला प्रतिष्ठित पद था। वहाँ उन्होंने दो वर्षों तक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर के रूप में युवाओं को प्रशिक्षित करने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसके पश्चात, 28 अगस्त 1968 को स्क्वाड्रन लीडर के पद पर पदोन्नत होकर उन्होंने एनडीए, खड़कवासला स्थित वायुसेना प्रशिक्षण टीम में प्रभारी अधिकारी के रूप में अल्पकालिक किन्तु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
07 जनवरी 1970 से उन्होंने विंग कमांडर के रूप में एडवांस मुख्यालय, ऑपरेशनल कमांड, शिमला में वरिष्ठ वायु स्टाफ अधिकारी (SASO) के रूप में कार्यभार संभाला। इसके बाद, 01 जून 1970 से 23 सितम्बर 1973 तक वह नं. 28 स्क्वाड्रन, तेजपुर में कमांडिंग ऑफिसर रहे और इकाई के संचालन व प्रशिक्षण को सफलतापूर्वक नेतृत्व प्रदान किया।
इसके पश्चात 09 अक्टूबर 1973 से 18 नवम्बर 1975 तक उन्होंने एयरक्रू परीक्षा बोर्ड, हिंडन में कमांडिंग ऑफिसर के रूप में नियुक्ति प्राप्त की, जहाँ एयरक्रू की दक्षता और योग्यता की परीक्षाओं का निर्देशन किया।
21 अगस्त 1976 को ग्रुप कैप्टन के रूप में पदोन्नति प्राप्त कर उन्होंने वायु मुख्यालय, दिल्ली में जेडीपीओ (JDPO) के रूप में रणनीतिक एवं मानव संसाधन संबंधी दायित्वों का निर्वहन किया।
02 जनवरी 1978 से 25 मार्च 1979 तक वह 33 विंग, जामनगर में स्टेशन कमांडर रहे, जहाँ उन्होंने स्टेशन के समस्त प्रशासनिक एवं परिचालन कार्यों का नेतृत्व किया।
तत्पश्चात, 01 अप्रैल 1980 से 04 जनवरी 1981 तक उन्होंने वायु मुख्यालय, दिल्ली के आक्रामक संचालन निदेशालय में एयर कमोडोर पद पर रहते हुए निदेशक, आक्रामक संचालन के रूप में महत्त्वपूर्ण योजनाओं एवं अभियानों का मार्गदर्शन किया। अंततः, 06 जनवरी 1982 से 25 मार्च 1984 तक वह 28 विंग, हिंडन (गाजियाबाद) में एयर ऑफिसर कमांडिंग के रूप में कार्यरत रहे और अपने दीर्घकालिक अनुभव से इकाई को संगठित एवं सुदृढ़ नेतृत्व प्रदान किया।
1965 का भारत-पाक युद्ध:
1965 के युद्ध के दौरान भूपेंद्र कुमार विश्नोई स्क्वाड्रन लीडर के रूप में हलवाड़ा, पंजाब में तैनात थे। इस दौरान केवल 15 दिनों में 16 मिशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। इन मिशनों में, उन्होंने कसूर/लाहौर सेक्टर में पाकिस्तान के टैंकों, बख़्तरबंद वाहनों और तोपखानों को नष्ट कर दिया। भूपेंद्र कुमार विश्नोई के नेतृत्व में चार विमानों की टीम ने साहस एवं कौशल का प्रदर्शन करते हुए कसूर-लाहौर में गोला-बारूद की कमी को दूर करने के लिए जा रही ट्रेन को रायविंड रेलवे स्टेशन पर नष्ट कर दिया, जिससे पाकिस्तानी सेना को इस क्षेत्र से पीछे हटने के लिए मजबूर किया और भारत की रणनीतिक जीत में योगदान दिया। इस दौरान उनका विमान तीन बार दुश्मन की गोलीबारी का शिकार हुआ लेकिन उन्होंने अपने इस मिशन को जारी रखा। इस असाधारण वीरता के लिए उन्हें 1 जनवरी 1966 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
1971 भारत-पाक युद्ध:
भूपेंद्र कुमार बिश्नोई ने 14 दिसंबर 1971 के केवल 3 मिनट के मिशन का नेतृत्व कर पाकिस्तान गवर्नर हाउस पर एयर स्ट्राइक किया, जिससे युद्ध को निर्णायक मोड़ मिला और बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
1971 युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना के विमान लगातार जोरदार हमला कर रहे थे। हवाई प्रतिउत्तर में उनके तीन-चार विमान रोज़ नष्ट हो रहे थे। इसलिए उन्होंने अपने विमानों को छुपा लिया था। वे अपने विमानों को सिर्फ भारतीय विमानों पर हमला करने के लिए ही प्रयुक्त करने लगे। इस परिस्थिति में भूपेंद्र कुमार बिश्नोई ने अपने चीफ के पास जाकर बताया कि क्यों न पाकिस्तान की हवाई पट्टी को ही नष्ट कर दिया जाए। इस पर चीफ ने इस प्लान को 'सुसाइड प्लान' कहा, और इजाज़त नहीं दी, क्योंकि इसके लिए दुश्मन के इलाके में बहुत नीचे उड़ान भरनी थी, जो सुसाइड से कम नहीं था। लेकिन परिस्थितियों को देखते हुए 24 घंटे बाद इजाज़त दे दी गई।
भूपेंद्र कुमार विश्नोई अपने साथ तीन और एयरक्राफ्ट की टीम लेकर 500-500 किलो के बम लेकर मिशन पर रवाना हुए और पाक की पूरी हवाई पट्टी को नष्ट कर दिया। उन्होंने तीन बार अलग-अलग समय पर हमला किया।
![]() |
वीर चक्र और बार टू वीर चक्र से सम्मानित AVM बी.के. बिश्नोई |
इसके बाद 14 दिसंबर 1971 के दिन उन्हें खुफिया जानकारी मिली कि गवर्नर हाउस, ढाका में आगे की विस्तृत रणनीति के लिए पाकिस्तान की कैबिनेट एवं कुछ देशों के एंबेसडर मीटिंग करने वाले हैं। उन्हें इस लोकेशन को टारगेट करने का ऑर्डर मिला। उन्हें प्लान तैयार करने में 45 मिनट का समय मिला। इस टारगेट पर टूरिस्ट मैप को देखकर अटैक करना था। उन्होंने टूरिस्ट मैप देखना शुरू किया लेकिन कहीं भी गवर्नर हाउस लिखा हुआ नहीं मिला। आखिर में उस इमारत के गुंबद को देखकर उन्होंने अंदाजा लगाया कि यही गवर्नर हाउस होगा और हमला कर दिया और ढाका के गवर्नर हाउस पर 128 रॉकेट दागे। इस हमले ने पाकिस्तान की सरकार को झकझोर दिया और उसी दिन पाकिस्तान के गवर्नर ने बैठक के बीच में ही इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने कोमिला सेक्टर में भी दुश्मन के सैन्य ठिकानों पर सटीक बमबारी की और उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया। इस प्रकार बिश्नोई और उनकी टीम ने पाकिस्तान की वायुसेना को इतना पंगु बना दिया कि उसके कई लड़ाकू विमान रनवे से उड़ान ही नहीं भर पाए।
16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने भारत और बांग्लादेश की संयुक्त सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस दिन बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का उदय हुआ।
उनके द्वारा अत्यंत बहादुरी, कौशल और उच्च कोटि के नेतृत्व प्रदर्शित के कारण उन्हें 26 जनवरी 1972 को भारत के राष्ट्रपति द्वारा दूसरी बार वीर चक्र से सम्मानित किया गया।
सम्मान और पुरस्कार (Awards and Decorations): वीर चक्र और बार टू वीर चक्र (Bar to VrC)
- वीर चक्र (Vir Chakra)
- पद: स्क्वाड्रन लीडर
- सेवा संख्या: 4594 GD(P)
- घोषणा तिथि: 07 सितम्बर 1965
- सम्मान तिथि: 01 जनवरी 1966
- इकाई: 20 स्क्वाड्रन
- संदर्भ: भारत का राजपत्र (Gazette of India), 12 फरवरी 1966 - No.15 - Pres/66 dated 1st January 1966
- बार to वीर चक्र (Bar to Vir Chakra)
- पद: विंग कमांडर
- सेवा संख्या: 4594 F(P)
- सम्मान तिथि: 26 जनवरी 1972
- घोषणा तिथि: 26 जनवरी 1972
- इकाई: 28 स्क्वाड्रन
- संदर्भ: भारत का राजपत्र, 17 जून 1972 - No.76 - Pres/72 dated 1st June 1972
![]() |
दो बार वीर चक्र से सम्मानित भारतीय वायुसेना अधिकारी |
एयर वाइस मार्शल भूपेंद्र कुमार बिश्नोई का जीवन साहस, समर्पण और देशभक्ति का अनुपम उदाहरण है। 31 जनवरी 1987 को वायुसेना से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने अपने अनुभवों को विभिन्न साक्षात्कारों के माध्यम से साझा किया, जो आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके नेतृत्व और वीरता ने भारतीय वायुसेना को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और उन्हें सदा के लिए वायुसेना के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय बना दिया। राष्ट्र की सेवा में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनका निधन 19 फरवरी 2023 को हुआ, परंतु उनकी स्मृतियाँ और आदर्श सदैव हमारे दिलों में जीवित रहेंगे और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।