खेराज भोमिया जी, कुचौर | History of Kheraj Bhomiya Ji Kuchor

खेराज भोमिया जी महाराज का इतिहास (History of Kheraj Bhomiya Ji Maharaj Kuchor):

राजस्थान राज्य के बीकानेर जिले के नोखा तहसील में कुचोर अगुणी गांव में श्री खेराज भोमिया जी महाराज (Kheraj Bhomiya Ji Maharaj) का भव्य मंदिर स्थित है। खेराज भोमिया जी (Kheraj Bhomiya Ji) का जन्म मोहिल, चौहान राजपुत परिवार में छापर द्रोणापुर में विक्रमी संवत् 1438 भादवा सुदी 14 के दिन राणा माणक रावजी मोहिल, चौहान के घर हुआ था। खेराज भोमिया जी (Kheraj Bhomiya Ji) की माता जस कंवर भटयाणी था जो जैसलमेर के राजा रावल केहर की पुत्री थी।

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खेराज भोमिया जी का विवाह पूंगलगढ़ की राजकुमारी सिणगारी पडियार के साथ हुआ था। खेराज भोमिया जी महाराज विक्रमी संवत् 1481 फाल्गुन सुदी अष्टमी के दिन गायों की रक्षार्थ युद्व करते हुए कुचोर अगुणी गांव में शहिद हुए थे। राणी सिणगारी पडियाल, खेराज भोमिया जी के पीछे खेजड़ी को साक्षी मानकर सति हुई थी। यह खेजड़ी का वृक्ष प्राचीन मंदिर के पास स्थित था, परन्तु वर्तमान में सुख जाने के कारण नये मंदिर के निर्माण के समय हसे हटा दिया गया। अब यहां भव्य मंदिर स्थित है।

इस युद्ध का आगाज खेराज भोमिया जी की बहन कोडमदे के विवाह के दिन से हुआ था। कोडमदे का विवाह जैसलमेर के पुगलगढ़ के साहिल भाटी के साथ विक्रमी संवत् 1481 फाल्गुन सदी 5 को हुआ था। इस युद्व में खेराज भोमिया जी के साथ 360 भाटी, चौहान, पडियार आदि वीर शहिद हुए थे। इस युद्व में खेराज भोमिया जी के बहनोई साहिल भाटी भी वीर गति को प्राप्त हुए थे। उनके पीछे बहन कोडमदे सति हुई थी, जो आज कोडमदेसर भेरूजी के नाम से प्रसिद्व है।

कवि ने लिखा हैं-

बिना शिष खैराज ने मारे सत बतीस धीर वीर माणक सुता बरेण गुण सतीस

मोहिल जी मर काटीया बिना शिष दोय हाथ मुख धड़ बिन हंसतो रहो जब देखो एक साथ

घड़ पड़ियो जब बैठगी सब फौजा एक ठोड़ मोहिल रंण में जुंजियो धन्य घरा कुचौर

जांगल धरा रा भोमिया भयो जुंजारू खैराज भाटिया हन्दो भाणजी दो कुल तारिया आज

श्री खेराज भोमिया जी मंदिर, कुचौर (Shri Kheraj Bhomiya Ji Mandir, Kuchor):

वर्तमान में भोमिया जी के प्राचीन मंदिर के स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर परिसर में बाहर की तरफ हवन शाला स्थित हैं। मंदिर परिसर के पास ही श्री गुरू जम्भेश्वर का भव्य मंदिर स्थित है। बिश्नोई समाज (Bishnoi samaj) के लोग अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए भोमिया जी की जात बोलते है। जब उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं तो अपने कुटुम्ब के साथ मंदिर दर्शनार्थ आते हैं और मंदिर में यज्ञ शाला में खोपरे एवं घर से लाये हुए घी से आहुती देते है ओर दम्पती सेड़ा बांधकर पांच फेरे लगाते है। फिर मंदिर परिसर में स्थित भोमिया जी महाराज के दर्शन कर यहां भी पांच फेरे लगाने का रिवाज है। ज्येष्ठ पुत्र होने पर उसके बाल भोमिया महाराज (Bhomiya Ji Maharaj) को चढ़ाते है। ऐसी मान्यता हैं कि बालक के हकलाने की कितनी भी बड़ी समस्या हो एक बार दर्शन करने आने पर तुरंत समस्या का समाधान हो जाता है।

खेराज भोमिया जी, कुचौर
खेराज भोमिया जी, कुचौर, अगुणी

बिश्नोई समाज के भक्तों का अंधेरी तेरस एवं चौदस को भोमिया जी महाराज के दर्शनार्थ मेला लगा रहता हैं। बिश्नोई समाज के वे लोग जो भोमिया जी को पूजते है वे गुरू जम्भेश्वर भगवान के मुकाम मंदिर में दर्शन करने जाने से पहले भोमिया जी के दर्शनार्थ जाते है। भोमिया महाराज से जो भी भक्त सच्चे दिल से मनोकामना मांगता हैं भोमियाजी उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

खेराज भोमियाजी के मेले के दिन धोक लगाने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता हैं। पुजारी जी द्वारा खेराज भोमिया जी की प्रतिमा का विशेष शृंगार कर ज्योत की जाती हैं। मेले में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश सहित प्रदेश के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर के हवन कुंड में स्थापित सामूहिक हवन में घी-खोपरों की आहुतियां देकर पर्यावरण शुद्धि का संकल्प लिया जाता हैं एवं मंदिर में जात-झडूलों की रस्म अदायगी होती हैं।


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